
एक समय की बात है, एक पुराने कुएँ में एक मेंढक रहता था। उसका नाम ‘कूपक’ था। कूपक ने कभी भी कुएँ से बाहर की दुनिया नहीं देखी थी। वह मानता था कि उसका कुआँ ही पूरी दुनिया है, और उससे बड़ा कुछ नहीं। वह अपने छोटे से कुएँ में कूदता, उछलता और स्वयं को सबसे महान समझता था।एक दिन, एक समुद्री मेंढक, जिसका नाम ‘जलधि’ था, भटकते हुए उस कुएँ के पास आ पहुँचा। वह प्यास बुझाने के लिए कुएँ में कूदा।कूपक ने जलधि को देखा और हैरानी से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो? क्या तुम इस कुएँ से हो? मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।”जलधि ने जवाब दिया, “नहीं, मैं यहाँ से नहीं हूँ। मैं तो बहुत दूर, विशाल समुद्र से आया हूँ।”कूपक हँसा, “समुद्र? यह क्या होता है? क्या यह मेरे इस कुएँ जितना बड़ा है?”जलधि ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारे कुएँ से हज़ार गुना नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों गुना बड़ा है समुद्र। यह इतना विशाल है कि तुम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। इसमें अनगिनत जीव रहते हैं, और इसका कोई किनारा नहीं दिखता।”कूपक को यह बात मज़ाक लगी। उसने कहा, “तुम झूठ बोल रहे हो! इस छोटे से कुएँ से बड़ा कुछ नहीं हो सकता। तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो।”जलधि ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कूपक अपनी बात पर अड़ा रहा। वह अपने सीमित दायरे को ही पूरी दुनिया मानता था और किसी भी नई बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं था।हार मानकर, जलधि ने कूपक से कहा, “ठीक है, अगर तुम्हें विश्वास नहीं होता, तो मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें समुद्र दिखाऊँगा।”शुरुआत में कूपक डर गया, लेकिन जलधि के लगातार आग्रह पर, उसने हिम्मत की और कुएँ से बाहर निकला। पहली बार उसने आसमान देखा, हरे-भरे पेड़ देखे, और एक खुली, विशाल दुनिया देखी। वह हैरान रह गया।फिर जलधि उसे समुद्र तट पर ले गया। जैसे ही कूपक ने विशाल, नीले समुद्र को देखा, उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसी जगह भी हो सकती है। वह तुरंत समझ गया कि उसकी दुनिया कितनी छोटी थी और उसने कितने बड़े भ्रम में जीवन बिताया था।